कोरोनाकाल में मदिरालय खुल सकते है तो देवालय क्यों नहीं: कमल मुनि
- जैन संत ने उठाई धार्मिक स्थल खोलने की मांग
सेवा भारती समाचार
जोधपर। जैन समाज के संत कमलमुनि कमलेश ने कहा कि जब कोरोना के चलते अरजाकता, बीमारी, बुराई और अपराध के जनक मदिरालय खोले जा सकते है तो फिर जीवन निर्माण में आध्यात्मिक चेतना का संचार कर मानव को जागृत करने वाले देवालय को क्यों नहीं खोला जा रहा है। वे आज जोधपुर में चातुर्मास के लिए जोधपुर आने के बाद संवाददाताओं से रूबरू थे। उनका चातुर्मास नेहरू पार्क के पास महावीर भवन में 4 जुलाई से पांच माह के लिए आयोजित किया जाएगा जिसमें वे सोशल डिस्टेंसिंग व सरकारी गाइडलाइन की पालना करते हुए अपने साधकों को प्रवचनों से लाभान्वित करेंगे। इसके साथ ही स्कूल-कॉलेजों और केन्द्रीय कारागृह तथा सुधार गृहों में जाकर भी प्रवचन देंगे। उन्होंने कहा कि धार्मिक स्थानों की पॉजिटिव ऊर्जा से ही आत्म शक्ति को जागृत किया जा सकता है। साथ ही कोरोना से पॉजिटिव हुए लोगों को नेगेटिव करके रोग को हराया जा सकता है। केन्द्र और राज्य सरकारें ने हवाई जहाज, रेल और बसों के अन्दर यात्रा करने के लिए जो कानून बनाए है वहीं देवालयों और धार्मिक स्थलों पर भी लागू किए जा सकते है। उन्होंने कहा कि समाज को दिशा दिखाने वाले संतों का निर्माण भी धर्म स्थलों की बदौलत ही होता है। एक तरफ जहां आध्यात्मिकता के सहारे ही हिन्दुस्तान को विश्व गुरु के रूप में महामंडित किया जाता है वहीं शक्ति और भक्ति के साथ कोरोना वायरस को हराने में महत्वपूर्ण आध्यात्मिक साधना केन्द्रों पर रोक लगाना अनुचित है। आध्यात्मिक सोच और संस्कारों से प्रतिरोधक क्षमता विकसित होती है जिसका निर्माण पैसे ले-देकर नहीं किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि इस बार का चातुर्मास कोरोना के चलते सादगी सहित मानवता की सेवा के उद्देश्य से किया जाएगा और फिजुलखर्ची पर अंकुश लगाकर उस धन का सदुपयोग कोरोना से पीडि़त जनता की सेवा और इलाज के रूप में किया जाएगा। उन्होंने कहा कि आध्यात्किता में विश्वास रखने वाले को भय से शीघ्र मुक्ति मिलती है। भय सबसे बड़ा रोग है जिसका इलाज डॉक्टर और विज्ञान के पास नहीं बल्कि अध्यात्म में है जो कि संतों और गुरुजनों के सान्निध्य में ही बढ़ता है। इसके साथ उन्होने आमजन को भी सावचेत किया कि कोरोना गया नहीं है बल्कि अब उसका विकराल रूप सामने आएगा। इससे बचने के लिए खुद को ही सजग रहकर सरकार की गाइडलाइन के अनुसार जीवनशैली को अपनाना होगा। उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में आमजन को देशभक्ति से ज्यादा स्वार्थभक्ति हावी है जिसके चलते देश में शहीदों की शहादत से ज्यादा दूसरे देशों में खेल जीतकर आने वालों को आर्थिक और सामाजिक सम्मान मिलता है यह गलत है। कोरोना से जंग में जुटे पुलिस प्रशासन, चिकित्सकों तथा सफाई कर्मियों के साथ पत्रकारों की मौत पर भी सम्मानजनक दर्जा देने की मांग उन्होंने सरकार से की। उन्होने कहा कि सरकार को केन्द्रीय कारागृह के नाम बदल कर सुधारगृह और कैदी को प्रेमी कहकर संबोधित करके उनके मन विचारों को अपराधिक मानसिकता से दूर किया जा सकता है।