अहिंसा को अपनाए बिना कोरोना जैसी आपदाओं से मुक्ति संभव नहीं: संत चन्द्रप्रभ
सेवा भारती समाचार
जोधपुर। संत महोपाध्याय चन्द्रप्रभ सागर महाराज ने कहा कि भगवान महावीर के मूल तीन ही सिंद्धात है -अहिंसा, अपरिग्रह और अनेकांत जिसे अपनाए बिना न तो कोरोना जैसी आपदाओं से और न ही विश्वशांति संभव है। अहिंसा, सत्य, अचौर्य, असंग्रह और ब्रह्मïचर्य-आज आचरण में कम, हाशिये में अधिक बैठे हैं। हमने अहिंसा, अचौर्य, असंग्रह में से अ को नेगलेट कर दिया है और उस अ को सत्य ओर ब्रह्मïचर्य के आगे लगा दिया है। परिणाम छल, मिलावट, अपनी कही हुई बात से मुकरना, आर्थिक लाभ के लिए झूठे दस्तावेज तैयार करना, दहेज व रिश्वत लेना, छोटे सा निमित्त मिलते ही दृष्टिï को अपवित्र कर लेना हमारी आदतें बन चुके हैं। संत चन्द्रप्रभ कायलाना रोड़ स्थित संबोधि धाम में आयोजित ऑनलाइन पर्युषण पर्व प्रवचनमाला के छठे दिन महावीर का जीवन चरित्र आज के परिपे्रक्ष्य में विषय पर संबोधित कर रहे थे। उन्होंने चुटकी लेते हुए कहा कि आज पूरे विश्व में भारतीय आदमी सबसे ज्यादा ईमानदार है लेकिन वह तभी तक ईमानदार है जब तक उसे बेईमानी करने का मौका नहीं मिलता है। महावीर की दृष्टिï में ऐसे लोग खतरनाक है। भीतर में पलने वाले इन अंधेरों को हटाकर स्वयं के आत्म-बोध और आत्म प्रकाश की ओर कदम बढ़ाना ही पर्युषण का मूल उद्देश्य है। उन्होंने कहा कि खुजली का रोगी जैसे खुजलाने पर दुख को भी सुख मानता है, वैसे ही कामातुर मनुष्य दुख को सुख मानता है। संसार का सेवन और कुछ नहीं कुत्ते द्वारा हड्डïी को चबाना भर है। खून खुद का और सोचता है कैसा मजा आ रहा है। व्यक्ति को भोग और श्रृंगार में डूबे अपने तन-मन को संयम की सुवास देनी चाहिए। हे जीव, तु इस तरह कब तक कीचड़-काचड़ में डूबा रहेगा, अब तो बोध को प्राप्त हो। जो मन हजार बार भोगने से भी तृप्त न हुआ क्या वो और सौ बार भोगने से तृप्त हो जाएगा। हम स्वपत्नी और स्वपति में भी संयम की मर्यादा लाएं।