‘ज्ञान भारतम मिशन’ भारत की सांस्कृतिक चेतना को फिर से जाग्रत करने का बीज : शेखावत

‘ज्ञान भारतम मिशन’ एवं पांडुलिपि संरक्षण कार्यशाला में बोले केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री

कहा, पिछले डेढ़ साल में अभिलेखागार में 9 करोड़ प्रश्नों को व्यवस्थित और सुरक्षित किया गया

जयपुर। केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत ने 15 दिवसीय पांडुलिपि लिप्यंतरण प्रशिक्षण कार्यशाला में कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी के मार्गदर्शन में शुरू की गई ‘ज्ञान भारतम मिशन’ सिर्फ एक योजना नहीं, बल्कि भारत की सांस्कृतिक चेतना को फिर से जाग्रत करने का बीज है। उन्होंने कहा, पिछले डेढ़ साल में अभिलेखागार में 9 करोड़ प्रश्नों को व्यवस्थित और सुरक्षित किया गया है।

कार्यक्रम में शेखावत ने कहा कि भारत की पांडुलिपि परंपरा विश्व में सबसे प्राचीन है, लेकिन दुर्भाग्यवश आज ब्रिटिश लाइब्रेरी में भारत से अधिक पांडुलिपियां संरक्षित हैं, लेकिन अब अच्छी बात यह है कि मंदिरों व गुरुकुलों में सुरक्षित पांडुलिपियों को आधुनिक तकनीक से डिजिटाइज कर जनसामान्य तक पहुंचाने का काम सरकार निरंतरता के साथ कर रही है। उन्होंने समाज, संत समुदाय और गैर-सरकारी संगठनों का आह्वान किया कि वे भी इस जिम्मेदारी को निभाएं।

उन्होंने बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मार्गदर्शन में आने वाले दिनों में उदयपुर में एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन होगा, जिसमें एआई के माध्यम से पांडुलिपियों को विभिन्न भाषाओं में पढ़ने योग्य बनाने पर विचार किया जाएगा।

संस्कृति के बिना राष्ट्र की कल्पना नहीं की जा सकती
केंद्रीय मंत्री ने कहा कि संस्कृति के बिना राष्ट्र की कल्पना नहीं की जा सकती है। भारत कभी विश्व गुरु था, क्योंकि हमारे ऋषि-मुनियों ने विज्ञान आधारित ज्ञान का निर्माण किया था। उन्होंने कहा कि पांचवीं शताब्दी से श्रुति-स्मृति परंपरा के कारण ही हमारा प्राचीन ज्ञान बचा रह पाया, और मुगलों के सैकड़ों वर्षों के हमलों के बावजूद साधु-संतों ने इस परंपरा को जीवित रखा। उन्होंने कहा, भारत की सनातन ज्ञान परंपरा, शास्त्रों और पांडुलिपियों के संरक्षण को राष्ट्र के अस्तित्व और पहचान से जोड़ते हुए इसके लिए समाज-सरकार साझेदारी की सख्त आवश्यकता है।

इनकी रही उपस्थिति
कार्यक्रम में प्रो. बनवारीलाल गोड़, रामचरित मानस मर्मज्ञ पं. महेश दत्त शर्मा, प्रो. कमलेश शर्मा, डॉ. सुरेन्द्र शर्मा, डॉ. रघुवीर प्रसाद शर्मा, डॉ. अंजना शर्मा, डॉ. श्रीकृष्ण शर्मा, डॉ. घनश्याम हरदेनिया, जयप्रकाश शर्मा, नरेन्द्र दोतोलिया, अवधेश वशिष्ठ, पंकज सहित अनेक विद्वान, शोधार्थी, सुरक्षा बल प्रतिनिधि एवं संस्कृत-भारती के कार्यकर्ताओं ने उत्साहपूर्वक सहभागिता की।

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