किसी भी प्रकार की चाहत मत रखो: सिद्धचंद्र सागर
क्रिया भवन में तीर्थकर शीतलनाथ व श्रेयांसनाथ का हुआ गुणगान
जोधपुर। लोभ कषाय की चाहत रखने वालों को भव भव भटकना पड़ता है यह उद्गार रत्न प्रभ क्रिया भवन में चल रहे चौविस तीर्थंकर आराधना के तहत मुनि सिद्धचंद्रसागर ने व्यक्त किए उन्होंने कहा कि सिर्फ चाहना रखने वाले को भी भटना पड़ा उन्होंने रूपसेन का उदाहरण देते हुए कहा कि उन्होंने जीवन में कई प्रकार की चाहाना रखी इसलिए उनको भी भव भव भटकना पड़ा उन्होंने श्रावक व ग्रहस्थ में फर्क क्या है उन पर बताया कि श्रावक आज्ञा का पालन व ग्रहस्थ आज्ञा को ध्यान में रखकर पालन करता है। उन्होंने दसवें तीर्थंकर शीतल नाथ व 11 वें तीर्थंकर श्रेयांसनाथ भगवान के जीवन चरित्र पर विस्तार से प्रकाश डाला।संघ प्रवक्ता धनराज विनायकिया ने बताया क्रिया भवन में मुनि सिद्धेशचन्द्रसागर म.सा. व मुनि सिद्धचंद्रसागर व साध्वी नयप्रज्ञाश्री मोक्षरत्नाश्री . आदि ठाणा के सान्निध्य में सामुहिक तपस्या* की कड़ी में चौबीस तीर्थंकर तप* (सर्व दुःख निवारण तप) व वर्धमान तप आराधना तहत् तप आराधकों ने उपवास बियासणा का श्रावक भैरूमल कांताबेन द्धारा लाभ लेकर जैन धर्म के दसवे तीर्थंकर शितलनाथ 11वें तीर्थकर श्रेयांसनाथ भगवान के चैत्यवंदन देववंदन पूजा अर्चना महिमा गुणगान किया गया। संघ के रांका विनायकिया ने बताया रविवार को शासन स्पर्शना का विशेष आयोजन श्रावक विपुल भाई जैन द्वारा संगीतमय वातावरण के साथ आयोजित किया जाएगा।