नागरिकता नहीं तो कोरोना वेक्सीन भी नहीं


अपने ही देश में हुए पराये : मूलभूत सुविधाओं के अभाव में जीवनयापन को मजबूर

रिपोर्टर जगदीशपुरी गोस्वामी

जैसलमेर शहर के ट्रांसपोर्ट नगर इलाके के पास एक बस्ती

जैसलमेर। विभाजन के दर्द से कौन वाकिफ नहीं है , लेकिन विभाजन के बाद जो हिन्दू परिवार पाकिस्तान में बसे रहे उनका दर्द वहाँ सुनने वाला कोई नहीं था , वो पाकिस्तान में उनके साथ हो रही ज्यादतियों से तंग आकर आखिर वो अपने मुल्क हिन्दुस्तान आ गए , उन्हें लगा था की उनके पूर्वजों के इस देश में उनको वही प्यार वही दुलार मिलेगा जिसकी उम्मीद से वो पकिस्तान छोड़कर यहाँ आये थे , मगर उनको क्या पता था की उनके अपने देश में भी वो बेगानों  जैसे हो जायेंगे।जहां उनके साथ मूलभूत सुविधा बिजली,पानी,शिक्षा के साथ ही जीवन जीने के लिए लगने वाली कोरोना वेक्सीन में भी भेदभाव किया जाएगा।

वी.ओ.भारत पाकिस्तान बॉर्डर पर बसे जैसलमेर शहर के ट्रांसपोर्ट नगर इलाके के पास एक बस्ती है, पाक विस्थापितों की बस्ती , ये एक ऐसी जगह है जहां पर वो लोग बसते है जो कभी पाकिस्तान रहा करते थे, मगर जब उनके साथ वहां ज्यादतियां होने लगी चाहे वो जाति,धर्म या शिक्षा के नाम पर हो तो उन सबसे तंग आकर वो लोग वीजा लेकर हिन्दुस्तान आ गए और यहीं बस गए। यहाँ उन्हें अपने देश में शांति और सुकून तो नसीब हो गया मगर अभी तक वो इस देश के नागरिक नहीं बन पाए हैं जिनका उन्हें अभी भी मलाल है , पाकिस्तान में ज्यादतियों से परेशान होकर भारत में अपना घर बसाने का सपना लेकर हिन्दुस्तान में बसने वाले पाक हिन्दू शरणार्थियों को यहां रहने के लिए टुकड़ो-टुकड़ों में अनुमति तो मिल रही है, लेकिन उनको वो मान सम्मान अभी तक नहीं मिला जिसके लिए वो वापस अपने मुल्क आये थे ,वही कोरोना महामारी के चलते जहां देश मे मानवता का पाठ जोरो पर पढ़ाया जा रहा है वही इन शरणार्थियों को नागरिकता के अभाव में आधारकार्ड न होने के कारण शिक्षा,बिजली,राशन के साथ ही कोरोना वेक्सीन तक से भी अछूता रखा जा रहा है।बिना आधारकार्ड के इनको वेक्सीन तक नहीं लगाई जा रही है चाहे वो मरे या जिए इससे भी हुकूमत को कोई फर्क पड़ता नहीं दिख रहा है।बात करें नागरिकता की तो अभी तक यहां सेकड़ों ऐसे परिवार है जिनको भारत आए 15-20वर्ष हो गए है लेकिन नागरिकता नसीब नहीं हुई है और वो लोग आज भी अपने आप को पराया सा महसूस करते हैं ,आज भी बिना सुविधाओं के कच्ची बस्तियों में बिना लाइट पानी के जीवन यापन कर रहे कच्चे घरों में ये लोग अपने आप को हिन्दुस्तानी तो मानते हैं मगर अभी तक हिन्दुस्तानी होने के प्रमाण पत्र का इंतज़ार कर रहे है।

राजस्थान के जोधपुर, जैसलमेर, बाड़मेर जिलों में बसे पाक विस्थापित हिन्दू शरणार्थियों में से लगभग पाँच हजार को तो अब भी नागरिकता का इंतजार है। अब तक दस हजार को नागरिकता मिल चुकी है। भारतीय नागरिकता नहीं होने से जन्म से लेकर इनके बच्चों को सरकारी और निजी स्कूलों में प्रवेश के लिए भी खासी परेशानियां उठानी पड़ रही हैं। खास तौर से नवीं कक्षा और इससे ऊपर के मामलों में तो हाल ही खराब है। पाकिस्तान से हर वर्ष हिंदू राजस्थान आते हैं और यही रह जाते हैं। पहले छह माह, बाद में एक साल और आगे रुकने की अनुमति मिलती जाती है। और वो यहा रहना शुरू कर देते हैं लेकिन यहाँ के लोग उन पर भरोसा ही नहीं करते हैं किराए का मकान मिलना , काम,धंधा ढूंढना इन लोगों के लिए बहुत ही मुश्किल हो जाता है लेकिन फिर भी अपने देश में रहने के सुकून को ये भुला नहीं सकते. यहाँ पर आज भी वे विभाजन के दर्द को याद करते हैं तथा आज़ादी के मायनों को खुले आकाश के नीचे नागरिकता के सपने को टकटकी लगाए ताकते रहते हैं।

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