खुशियों को बटोरने नहीं, बांटने की कोशिश करें: संत चन्द्रप्रभ
सेवा भारती समाचार
जोधपुर। संत चन्द्रप्रभ महाराज ने कहा है कि जीवन के प्रति अगर हम सकारात्मक नजरिया अपना लेते हैं तो कष्ट और संघर्ष की वेला में भी हम अपने जीवन को सुखमय और आनंदमय बना सकते हैं। जीवन में किसी भी प्रकार की तकलीफ आना पार्ट ऑफ लाइफ है लेकिन धैर्य और शांतिपूर्वक उन तकलीफों से बाहर निकलना आर्ट ऑफ लाइफ है। चन्द्रप्रभ कायलाना रोड स्थित संबोधि धाम में सोशल मीडिया पर अपना प्रवचन देते हुए देशभर में श्रद्धालुओं को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि हमें हर समय सकारात्मक विचार रखने चाहिए। मैं सुखी आत्मा हूं, मेरी हर सोच, हर शब्द और हर व्यवहार दूसरों को सुख पहुंचाने वाले हों। मैं दूसरों को वो जैसे भी हैं बिना किसी शिकायत के स्वीकार करता हूं। मैं स्वयं खुश हूं और दूसरों को खुशियां देने का प्रयास करता हूं। मैं परमात्मा के सान्निध्य में हूं और मेरा हर कर्म परमात्मा को समर्पित है। ये सकारात्मक विचार हमारे लिए और सबके लिए मंगलपाठ का काम कर सकते हैं। संतप्रवर ने कहा कि प्रेम, प्रसन्नता और पुरुषार्थ इन तीनों को जीवन में जोड़े रखना चाहिए। ये हमें जीवन का माधुर्य देते हैं, तन-मन को खुशियों से भरते हैं और हमारा सोया भाग्य जागाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। उन्होंने कहा कि जिस घर के सभी सदस्यों में पारस्परिक प्रेम, मिठास और त्याग की भावना रहती है, वहां देवीय कृपा सदा बनी रहती है। हम कलह करके द्वेष की दिवारें न बनाएं, जो हम सबको अलग-अलग करें अपितु प्रेम के पुल बनाएं, जो अलग-अलग को भी आपस में जोड़ दें। परिवार में प्रेम रहेगा तो 10 लोग मिलकर घर में स्वर्ग का निर्माण कर लेंगे अन्यथा हर व्यक्ति के बीच में नफरत की दिवार खड़ी हो जाएगी। चन्द्रप्रभ ने जीवन को सहज जीने की प्रेरणा देते हुए कहा कि हम दूसरों को अपनी इच्छानुसार कभी भी ठीक नहीं कर पाएंगे। इसलिए ठीक करने की शुरुआत हमें अपने आप से करनी चाहिए। हम कोशिश करें हमारे द्वारा दूसरों को भरपूर प्रसन्नता मिले। जीवन में वही व्यक्ति खुशियों का मालिक बन सकता है, जो इन्हें बटोरने की बजाय दूसरों में बांटता है। संत ने पुरुषार्थ की प्रेरणा देते हुए कहा कि हमें सदा मेहनत करते रहना चाहिए। आज नहीं तो कल उसके पुण्य जरूर जागृत होते हैं, जो पुरुषार्थ पर भरोसा रखता है। मेहनत की मोमबत्ती जलाकर जीवन के अंधेरे को दूर किया जा सकता है। हम बचपन में पढ़ाई के लिए श्रम करें, जवानी में कमाई के लिए श्रम करें, प्रौढ़ अवस्था में सामाजिक कार्य एवं मानवीय हितों के लिए पुरुषार्थ करें, पर बुढ़ापे में हमारे कदम अध्यात्म और मोक्ष की ओर बढ़ जाने चाहिए।