कविता बुनने के लिये अच्छा पाठक होना ज़रूरी – डॉ. रमाकान्त शर्मा

जोधपुर। ’लिखने वालों की तादाद बढ़ रही है, पाठक कमज़ोर होता जा रहा है, जिसको अच्छा लिखना है उसे पढ़ने की तमीज़ होना चाहिए’ इन्ही उद्गारों के साथ संस्मरण और एकल काव्य की रसधारा का प्रवाह स्थानीय साहित्य और सांस्कृतिक संस्था लेखनी द्वारा बलदेवनगर स्थित धनक सभागार में आयोजित कार्यक्रम एक मुलाक़ात के अवसर पर कवि, आलोचक, अनुवादक और सम्पादक डॉ. रमाकान्त शर्मा ने अत्यन्त आत्मीयता से बतौर मुख्य अतिथि व्यक्त किये।

     वरिष्ठ कहानीकार डॉ. हरीदास व्यास ने डॉ. शर्मा की रचनायात्रा का परिचय देते हुए बताया कि डॉ. नामवर सिंह के प्रथम शोधार्थी रहे 75 वर्षीय डॉ. रमाकान्त शर्मा ने 37 वर्षो तक कॉलेज शिक्षा में हिन्दी का अध्यापन करने के साथ रचनाक्रम को जारी रखा जिनमें छलके आंसू – बिखरे मोती, कुहरे में धूप खिली, मौसम का इन्तज़ार, रात की कोख में उजाला है, स्मृतियों की झील में, परिन्दा आबोदाना चाहता है प्रसिद्ध काव्य संग्रह हैं, आलोचना की पुस्तकों में इनकी प्रकाशित पुस्तकें कविताओं के बीच, आचार्य रामचन्द्र शुक्ल – साहित्य चिन्तन एवं समीक्षा दृष्टि, हमारे पुरोधा – गणेशचन्द्र जोशी मन्वन्तर, राजस्थानी कविता की पहचान, कविता का स्वभाव, कविता की लोकधर्मिता तथा आलोचना की लोकधर्मी दृष्टि के साथ अनुवाद की पुस्तकें माओ कविता तथा रसूल हमजातोव और अन्य विदेशी कवितावां चर्चित रही हैं। वहीं युवा कवि अमजद अहसास ने कवि का जीवन परिचय प्रस्तुत किया।

     कार्यक्रम के प्रारम्भ में संस्था के अध्यक्ष, कवि एवं रंगनिर्देशक प्रमोद वैष्णव तथा सचिव मज़ाहिर सुलतान ज़ई द्वारा स्वागतोपरान्त डॉ. रमाकान्त शर्मा ने अपनी रचनायात्रा के संस्मरण में कहा कि ’मेरे नाना ने मेरी लिखी प्रेम रचना की कुछ पंक्तियां पढ़कर ढंग का लिखने की सलाह दी, मैं आज तक ढंग की कविता की तलाश में हूँ…. कविता प्रेम से शुरू होती है और प्रेम पर ही समाप्त होती है…’ उन्होने कहा कि वरिष्ठ रचनाकारों के स्थापित प्रतिमानों पर सदैव सहमत होना आवश्यक नहीं होता कवि को अपने प्रतिमान निर्धारित करने चाहिए, बिम्बात्मकता कविता की रचना के लिये आवश्यक है, उसमें संवेदना होनी चाहिए क्योंकि यह दिल की धड़कन और सांसों की खुश्बू होती है, कविता का मूल्यांकन समय से होता है। अपनी रचनाओं के प्रस्तुतिकरण में कविता, गीत इत्यादि प्रस्तुत किये जिसमें तेरे प्यार का सहारा ना होता, समन्दर तो होता किनारा ना होता…., चिन्तन को विराम कहां, अनुभव को आराम कहां, कैसा राम, रहीम कैसा, हाय पैसा हाय पैसा…. सुनाकर खूब दाद पायी। इस अवसर पर वरिष्ठ कवि कैलाश कबीर, डॉ. नीना छिब्बर, डॉ. विष्णुदत्त दवे, विपिन बिहारी गोयल, रहमतुल्लाह, नकुल दवे सहित शिक्षा, साहित्य तथा रंगमंच से जुड़े प्रबुद्धजन बड़ी संख्या में उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन राजस्थानी भाषा के साहित्यकार वाजिद हसन क़ाज़ी ने किया तथा आभार एम. एस. ज़ई ने ज्ञापित किया।

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