शिव कथा के प्रथम दिवस ही उमड़ पड़ा भक्तों का सैलाब
भगवान शिव के प्रत्येक नाम, उनकी वेशभूषा, उनका आचरण हमें इस समाज के किसी ना किसी पक्ष से ज्ञान प्रदान करता है।
जोधपुर। चोपासनी गार्डन में दिव्य ज्योति जागृति संस्थान की ओर से श्री शिव कथा अमृत का आयोजन किया जा रहा है। जिसमें सर्व श्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या कथा व्यास साध्वी सुश्री गरिमा भारती जी ने कथा का वाचन किया । कथा सुनने के लिए आएं अतिथिगणों में सुमेर सिंह राजपुरोहित (उपाध्यक्ष गौ सेवा आयोग, राजस्थान सरकार), जगत नारायण जोशी (निवर्तमान जिला अध्यक्ष, भाजपा), जयसिंह चौधरी ( रिटायर्ड चीफ इंजीनियर, PHED), जेठमल पुरोहित (अध्यक्ष,विनायक विहार), जे. पी. गर्ग (अध्यक्ष, लायंस क्लब जोधपुर), जसवंत जी कुमावत (व्यापार संघ अध्यक्ष, 9 सेक्टर) और अन्य कई शामिल थे।
भगवान शिव सृष्टि के कण-कण में स्पंदनशील है। भगवान शिव की वैश्विक उपस्थिति भारत के कोने कोने में पाए जाने वाले ज्योतिर्लिंगों से स्पष्ट होती है । भगवान शिव के प्रत्येक नाम, उनकी वेशभूषा, उनका आचरण हमें इस समाज के किसी ना किसी पक्ष से संबंधित ज्ञान प्रदान करता है। भगवान शिव के समुद्र मंथन के समय घोर हलाहल विष का पान करने की लीला एक संदेश देती है कि हमें हमारे अंतःकरण में ज्ञान के मंथनी के माध्यम से मंथन कर विषय विकारों को बाहर निकालकर घट में परमात्मा के अमृत को प्राप्त करना है। आज प्रत्येक मानव अपने भीतर के विषय विकारों की अग्नि में ही जलकर अशांत है। उस शांति की प्राप्ति हेतु प्रत्येक मानव को घट में अमृत को प्राप्त करना होगा। हमारे शास्त्र ग्रंथों के अनुसार मानव का जो शरीर है वह पांच तत्वों से निर्मित है और उसके मस्तक रूपी भाग जो है वह आकाश तत्व से बना है। जिस आकाश को गगन मंडल भी कहा जाता है। जिस गगन मंडल में अमृत का कुंड है जहां ब्रह्म का वास है। जिस प्रकार से हम भगवान शिव के मस्तक पर गंगा को सुशोभित देखते हैं। गंगा जी के जल को अमृत कह कर के संबोधित किया जाता है यह हमारे मस्तक रुपी गगन मंडल में जो अमृत का कुंड है उसे प्राप्त करने का संदेश देती है यदि हम उस अमृत के धार को प्राप्त करना चाहते हैं तो हमें एक गुरु की कृपा से अंतर जगत में उतरकर उस अमृत पान की युक्ति को जानना होगा।
साध्वी जी ने कहा- पावन कथा से बढ़कर कोई दूसरा दिव्य ज्ञान रसायन नहीं , जो मानव के जीवन को मुक्ति व सद्गति प्रदान कर सकें। इस कथा को सुनकर माता पार्वती भगवान शिव से अमरता का वरदान प्राप्त करती है। भगवान शिव के गले में पहने हुए नर मुंड माला प्रत्येक जीव के आवागमन के चक्र को दर्शाती है। जिस प्रकार माता पार्वती भगवान शिव से ज्ञान प्राप्त कर अमरता को प्राप्त हो गई, शिव भगवान के गले में पहने नर मुंडो की संख्या 108 पर आ कर रुक गई थी। ऐसे ही हमें भी उस ईश्वर के तत्व स्वरूप से जुड़कर आवागमन के चक्र से मुक्ति को प्राप्त करना है। शिव का प्रतिमा स्वरूप उनके साकार स्वरूप को दर्शाता है तो उनका ज्योतिर्लिंग स्वरूप निराकार स्वरूप की ओर इशारा है। एक तत्व से ना जुड़े होने के कारण आज हमारे दृष्टि में भेद है। कोई भगवान श्रीराम को मानता है, तो कोई प्रभु श्री कृष्ण को, कोई शिव भगवान की पूजा करता है, तो कोई आदि शक्ति मां जगदंबिका की। लेकिन वास्तव में दिव्य–नेत्र के अभाव के कारण हम इन सब समस्त शक्तियों को अलग अलग मानकर उनकी पूजा करते हैं। परंतु, यह तत्व स्वरूप से एक ही है। सर्व श्री आशुतोष महाराज जी आज वह दिव्य दृष्टि प्रदान कर उस एक शक्ति के साथ जोड़ रहे हैं। जिसके साथ जुड़कर मानव की भेद बुद्धि का नाश हो जाता है। निराकार साकार स्वरूप के पीछे छिपे तत्व स्वरूप को जानकर मानव की भक्ति सार्थक हो पाती है।