पाप करने के बाद पश्चाताप का रखें भाव : साध्वी डॉ.बिंदुप्रभा

नागौर। जयमल जैन पौषधशाला में बुधवार को साध्वी डॉ.बिंदुप्रभा ने प्रवचन में कहा कि मनुष्य वही कहलाता है, जो मननशील होता है। मनुष्य के पास तन के साथ मन भी उपलब्ध है। जिसके द्वारा व्यक्ति चिंतन मनन करते हुए कार्य कर सकता है। बिना सोचे समझे कार्य करने वाला मनुष्य पशु के समान है। तन की शुद्धि का हमेशा ध्यान रखने वाले मनुष्य को मन की शुद्धि की ओर भी ध्यान देना चाहिए। मन के द्वारा ही कर्मों का बंध भी होता है और कर्मों की निर्जरा भी की जा सकती है। मन के पाप भले ही सामने वाले को दिखाई न दे किंतु उसका दंड अवश्य भोगना पड़ता है। भगवान महावीर ने अहिंसा का सूक्ष्मता से वर्णन करते हुए मन से भी हिंसा करने का निषेध किया है। पाप क्रिया करने के बाद मन में प्रसन्नता नहीं बल्कि पश्चाताप का भाव होना चाहिए। मन से होने वाला प्रायश्चित ही पाप धोने का सबसे सरल उपाय है। अनुमोदना पाप की नहीं, धर्म की होनी चाहिए। किसी भी प्रकार की धर्म आराधना में रथ साधकों की अनुमोदना करने से उस व्यक्ति को भी उसका लाभ प्राप्त होता है। संचालन संजय पींचा ने किया। प्रवचन और जय-जाप की प्रभावना तथा प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता के विजेताओं को पुरस्कृत करने के लाभार्थी सुपारसचंद, सुमतीचंद लोढ़ा परिवार रहें। आगंतुकों के भोजन का लाभ भी लोढ़ा परिवार ने लिया। प्रवचन प्रश्नों के उत्तर मुदित पींचा, मनोज ललवानी, ललिता छल्लानी एवं रेखा सुराणा ने दिए। इस मौके पर चंद्रकला भूरट, शोभा पारख, लीलादेवी लोढ़ा, कंचनदेवी ललवानी आदि उपस्थित थे।

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