बिना कोरोना जाँच गाँव में प्रवेश भी निषेध
जैसलमेर। भारत-पाकिस्तान बॉर्डर पर स्थित जैसलमेर जिले का अंतिम गांव करड़ा जिसका मारवाड़ी में अर्थ ही है कठिन। नाम के मुताबिक यहां रहने वालों का जीवन भी बहुत ही करड़ा है। धोरों के बीच बसे इस गांव में साल में 4 से 5 महीने सुबह 9 से शाम 7 बजे तक रेतीली आंधियो के थपेले ही चलते रहते है।जहां धूल के गुबार और लम्बवत डेरा डाले सूर्यदेवता के प्रकोप में जीवनयापन करते इन वाशिंदों का जीवन कठिनाइयों भरा ही है वही वैश्विक महामारी कोरोना के चलते इस गाँव ने एक अनूठी मिशाल पेश की है।कोरोना जागरूकता के चलते गाइडलाइन की पालना के साथ ही कोरोना वेक्सिनेशन में भी इस गांव के वाशिंदों ने अहम भूमिका निभाई है और इनकी जागरूकता व सजगता के चलते ही ये गाँव कोरोना महामारी से अछूता है जहां एक भी कोरोना पॉजिटिव नहीं आया है।सर्वे के दौरान करीब एक हजार की आबादी के इस गांव में घरों से बाहर केवल 15-20 लोग ही नजर आए।बाकी सभी अपने घरों में ही दिखे।गाँव की महिलाएं व बच्चे तो घरों से बाहर तक नहीं निकल रहे है ।लोगों का कहना है कि अभी कोरोना पूरी तरह से खत्म नहीं हुआ है जिसके चलते उन्हें घरों में ही रहने की हिदायत है।सरकार की बॉर्डर एरिया डवलपमेंट योजना से गांव में पानी व बिजली की व्यवस्था है। यहां बारिश कम ही होती है, सभी ग्रामीणों की आजीविका का साधन पशुपालन है। इस गांव में दो हजार से अधिक गायें है।
इनसे सीखिए अनुशासन-गांव के लगभग सभी बुजुर्ग अशिक्षित है। बावजूद इसके उनकी जागरूकता व अनुशासन देखते ही बनती है। इसी का ही नतीजा है कि उन्होंने यहां कोरोना की एंट्री नहीं होने दी। कोरोना की दोनों लहर ने जैसलमेर जिले में हाहाकार मचा दिया था। 18 हजार से ज्यादा पॉजिटिव मिले और 250 के करीब मौतें हुई। इस गांव के लोगों में कोरोना को लेकर अनुशासन ऐसा कि कोरोना का असर शुरू होते ही गांव में किसी बाहरी को प्रवेश नहीं करने दिया।
बिना जाँच अपनों का प्रवेश भी निषेध-इनके खुद के परिजन जो शहर में रहते हैं, उन्हें निगेटिव रिपोर्ट साथ लाना अनिवार्य कर दिया। स्थानीय लोगों ने बताया कि दूसरी लहर में उन्हें गांव जाने के लिए तीन बार कोरोना की जांच करवानी पड़ी।वही यदि कोई जाँच करवाए बिना भी आ गया तो उसके लिए गांव से अलग एक सभाभवन में 7 दिन रहने की व्यवस्था की गई और गांव वालों को उससे दूर रहने की हिदायत दी गई।
सजगता के चलते 45+का 100%वेक्सिनेशनअब बात जागरूकता की। जैसलमेर में जैसे ही 45 प्लस के टीके लगने शुरू हुए तो यहां के अधिकांश बुजुर्गों ने हाथों हाथ टीके लगवा लिए। उस समय जहां शहर के लोग भी टीके लगवाने से डर रहे थे, लेकिन यहां ऐसा नहीं था। वर्तमान में 45 प्लस का 100 प्रतिशत वैक्सीनेशन इस दूरस्थ व दुर्गम इलाके में बसे गांव का हो चुका है। अब यहां 18 प्लस के टीकों का इंतजार किया जा रहा है ताकि सभी युवा भी वैक्सीनेशन करवा सके।