ईश्वर महाकीर्ति यज्ञशाला में चार युग व चारों वेदों का प्रतिनिधित्वमहामृत्युंजय कोटी रुद्र हवन में होंगे सतयुग के दर्शन
जोधपुर। परमहंस स्वामी ईश्वरानंद गिरि महाराज द्वारा दईजर लाछा बासनी में स्थापित संवित धाम आश्रम में 12 जुलाई से प्रारंभ हो रहे महामृत्युंजय कोटि रुद्र हवनमें बनाई गई भव्य यज्ञशाला में प्रवेश के लिए बने चारों द्वार सतयुग, त्रेतायुग, द्वापर युग और कलयुग के साथ साथ ऋग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद ओर सामवेद का प्रतिनिधित्व करते हुए भारतीय सनातन संस्कृति का साक्षात दर्शन कराएंगे।
सोमयाजी अग्निहोत्री पंडित नवरतन व्यास के आचार्यत्व में होने वाले हवन के लिए बनाई गई 25 कुंडीय यज्ञशाला का नाम ईश्वर महाकीर्ति रखा गया है । सभी हवन कुंड समचौरस आकृति में बने हैं तथा पांच पांच कुंड की कतार में बनाए गए हैं। समचौरस कुंड प्रकृति कुण्ड कहलाते हैं जिसमें 24 कुण्ड 24 तत्व पाँच महाभूत,पाँच ज्ञानेंद्रिय ,पाँच कर्मेन्द्रिय,पाँच तन्मात्रा , अंतःकरण चतुष्टय मन,बुद्धि,चित्त,अहंकार का प्रतीक है जबकि पच्चीसवाँ मध्य प्रधान कुण्ड आत्मा का प्रतीक। है । प्रत्येक कुण्ड में नाभि,कण्ठ,मेखला,योनि , प्रनाल इत्यादि अंग हैं।
जोधपुर संवित साधनायन सोसायटी की अध्यक्षा रानी उषा देवी और सचिव भरत जोशी ने बताया कि लगातार एक माह तक चलने वाले महामृत्युंजय कोटि रुद्र हवन में एक करोड़ महामृत्युंजय मंत्र की आहुतियां दी जाएगी । उन्होंने बताया कि अग्निहोत्री पंडित नवरतन व्यास के नेतृत्व में दिव्य यज्ञशाला का निर्माण किया गया है जो पूर्ण रूप से प्राकृतिक पदार्थों से निर्मित है ।
सभी कुण्ड ईंट गोबर व मिट्टी के गारे से बनाये गए तथा बाँस बल्लियों व सीरकियों से मण्डप बनाया गया है। ईश्वर महाकीर्ति यज्ञशाला के चार द्वारों में पहला पूर्व दिशा का तोरण द्वार जिसका वैदिक नाम सुदृढ़ है जो ऋग्वेद व सतयुग का प्रतिनिधित्व करता है जिसका संवित नाम धृति द्वार रहेगा। इसी तरह दक्षिण दिशा का तोरण- विकट नाम, यजुर्वेद, त्रेतायुग और संवित नाम शेमुषी गुरु द्वार होगा जिसमें से सिर्फ गुरु, संत, महात्मा ओर आचार्य ही प्रवेश करने के अधिकारी हैं।
पश्चिम दिशा तोरण सुभीम नाम, सामवेद, द्वापर युग संवित नाम मेधा द्वार तथा उत्तर दिशा तोरण सुप्रभ नाम, अथर्ववेद , कलियुग, संवित नाम श्रीद्वार रखा गया है। तोरण की स्थापना और पूजा सभी विघ्न बाधाओं को रोकने के लिए की जाती है।