संगोष्ठी में परिहार की साहित्यिक सेवाओं को याद किया

जोधपुर। भारतीय साहित्य विकास न्यास एवं राजस्थानी माणक के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित ओळूं रै आंगणियै जुगल परिहार संगोष्ठी में सूर्यनगरी के साहित्यकारों ने राजस्थानी भाषा के वरिष्ठ साहित्यकार एवं माणक के सहायक संपादक स्व. जुगल परिहार को उनकी पहली पुण्यतिथि पर श्रद्धासुमन अर्पित किए।
संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए प्रो. जहूर खां मेहर ने कहा कि मातृभाषा के प्रति जुगल परिहार का समर्पण सदैव याद किया जाएगा। मुख्य अतिथि प्रो. कल्याणसिंह शेखावत ने कहा कि जुगल परिहार की स्मृति को स्थाई महत्व दिया जाना चाहिए ताकि लोगों को प्रेरणा मिल सके। मुख्य वक्ता डॉ. गजेसिंह राजपुरोहित ने जुगल परिहार को राजस्थानी भाषा के उन्नयन व विकास का साधक बताते हुए माणक जुगल परिहार शोध पीठ की स्थापना को महत्वपूर्ण कदम बताया। वरिष्ठ साहित्यकार व न्यास के प्रदेश अध्यक्ष सत्यदेव संवितेन्द्र ने स्व. परिहार से जुड़े संस्मरण सुनाते हुए कहा कि परिहार के लिए आज भी हमारी आंखें भीग जाती हैं।
राजस्थानी मासिक माणक एवं दैनिक जलते दीप के प्रधान संपादक पदम मेहता ने स्व. परिहार की चार दशक से अधिक की सेवाओं व राजस्थानी के लिए लगाव को अभूतपूर्व बताया। इस अवसर पर घेवर सारस्वत, डॉ. सुखदेव राव, मुकेश मांडण, आनंद हर्ष, कैलाशदान लाळस, कीर्ति परिहार, खेमकरण लालस आदि ने अपने विचार व्यक्त किए। अंत में गुरुदत्त अवस्थी ने आभार ज्ञापित किए। इस मौके पर स्व. जुगल परिहार के परिवजन] सहकर्मी व मित्रगण उपस्थित रहे।

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