कोहिनूर से भी अगर कोई चीज कीमती है तो, वो है केवल परिवार: निहालचंद

विधिक सेवा सचिव श्री निहालचंद ने लिया वृद्धाश्रम की व्यवस्थाओं का जायज़ा

जोधपुर। राजस्थान राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण  के निर्देशों की अनुपालना में बुधवार को जिला विधिक सेवा प्राधिकरण जोधपुर जिला के सचिव निहाल चन्द की अध्यक्षता में विधि प्रशिक्षु छात्र-छात्राओं द्वारा आस्था वृद्धा-आश्रम में जाकर वरिष्ठ नागरिकों से बातचीत कर वृद्धाश्रम की व्यवस्था का जायज़ा लिया गया। 

सचिव निहालचन्द ने बताया कि जोधपुर शहर में दिग्विजय नगर में स्थित आस्था वृद्धा आश्रम श्रीमद् राजेन्द्र सूरी धापू बाई फूलचन्द जी बोहरा वरिष्ठ नागरिक सदन में मैनेजर श्री महावीर हुड्डा की उपस्थिति में वृद्धा-आश्रम परिसर में ही भोजनशाला, क्रिड़ाशाला, दवाखाना, व्यायामशाला, पुस्तकालय का मुआयना किया गया। उन्होंने बताया की अपनों के सितम से सताए गए वृद्धजन के लिए ये वृद्धा-आश्रम किसी स्वर्ग से कम नहीं है। सुबह बिस्तर में दूध के नाश्ते से लेकर दोपहर में हरी सब्जी और रात को दाल चावल सहित मिष्ठान यहां खाने में दिया जाता है।

अपनो के दिए गए दर्द से तंग आकर उक्त आश्रम में करीब 50 से अधिक वृद्ध अपना अपना जीवन ज्ञापन कर रहे है। यह सभी वो हैं, जिनका अच्छा समय गुजर गया और जीवन के अंतिम पड़ाव पर पहुंचे तो उन्हें उनके अपनों ने छोड़ दिया। यहां रहने के साथ-साथ सभी तरह की सुविधाएं मिल रही हैं। खाने को तीनों टाइम चाय-नाश्ता, भोजन उनकी आवश्यकता के हिसाब से दिया जाता है और दवा तक का बेहतर इंतजाम है। चलने-फिरने में असमर्थ वृद्धों के लिए ट्राइसाइकिल का इंतजाम है। इस आश्रम में जहां रहने वाले वृद्धों का कोई अपना नहीं है, लेकिन गैरों के हाथों से जीवन के आखिरी पड़ाव पर सहानुभूति और देखभाल का जो मरहम लग  रहा है, वो उन्हें अपनों के फर्ज जैसा ही लग रहा है।

सचिव निहालचन्द ने बताया कि जैसे-जैसे भारत तेज़ी से शहरीकरण की ओर बढ़ रहा है और परिवार छोटी इकाइयों में बँट रहे हैं, आमतौर पर शहरी एवं अर्द्ध-शहरी क्षेत्रों में वृद्धाश्रमों की संख्या में भी वृद्धि हो रही है। इसके साथ ही, वृद्ध लोगों की देखभाल का प्रबंधन अब पेशेवरों या स्वैच्छिक संगठनों द्वारा संभाला जाने लगा है जहाँ उन्हें सरकार और स्थानीय परोपकारी व्यक्तियों का समर्थन प्राप्त होता है। उन्होंने बताया कि वृद्धाश्रमों के प्रति एक औपचारिक दृष्टिकोण अब भारत के लिये एक महत्त्वपूर्ण नीति और नियोजन चिंतन का विषय बनना चाहिये। वृद्धा-आश्रम एकल परिवार प्रणाली के उद्भव का परिणाम हैं। पारिवारिक उपेक्षा, बेहतर अवसरों की तलाश में बच्चों के प्रवासन/पलायन से परिवारों के विघटन और शिक्षा, प्रौद्योगिकी आदि के मामले में नई पीढ़ी के साथ तालमेल बिठा सकने में असमर्थता जैसे कारक वृद्ध व्यक्तियों को वृद्धाश्रम की सहायता लेने को विवश करते हैं, जहाँ वे अपने जैसे अन्य लोगों के साथ रह सकते हैं।

कई बार तो वृद्ध लोग वृद्धाश्रम में ही स्वतंत्रता और मैत्रीपूर्ण माहौल के लिये अधिक सहज महसूस करते हैं जहाँ अपने जैसे अन्य लोगों के साथ रहते, संवाद करते वे सुखद समय व्यतीत करते हैं। कई बार तो वे परिवार के सदस्यों से भी कुछ असंलग्नता रखने लगते हैं और वृद्धाश्रम ही में अधिक सुरक्षित महसूस करते हैं। वृद्ध व्यक्ति समाज के लिये संपत्ति की तरह हैं, बोझ की तरह नहीं और इस संपत्ति का लाभ उठाने का सबसे अच्छा तरीका यह होगा कि उन्हें वृद्धाश्रमों में अलग-थलग करने के बजाय मुख्यधारा की आबादी में आत्मसात किया जाए।

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