“भूटान से कोलंबिया तक: जोधपुर रिफ 2025 में दुनिया का अनूठा लोक-संगीत संगम”
जोधपुर रिफ 2025: दुनिया भर की लोक-संगीत परंपराएँ एक ही मंच पर
जोधपुर। इस वर्ष 2 से 6 अक्तूबर तक, जोधपुर रिफ़ (Jodhpur RIFF) मेहरानगढ़ किले की ऐतिहासिक प्राचीरों पर एक अनोखा संगीतमय समागम रचेगा। दक्षिण एशिया, मध्य एशिया, मध्य पूर्व, यूरोप, ब्रिटेन और अमेरिका से आए दुर्लभ और मोहक संगीतकार, कलाकार और प्रस्तुतियाँ एक ही मंच पर जुटेंगी — शरद पूर्णिमा की चांदनी में दर्शकों को समय और सीमाओं से परे एक अद्भुत संगीतमय यात्रा पर ले जाएगा ।
साल का सबसे उज्ज्वल पूर्णिमा का चाँद इस बार जल्दी ही जोधपुर के प्रतिष्ठित मेहरानगढ़ किले पर दमकेगा और अपने साथ लाएगा वैश्विक लोक-संगीत का अद्वितीय खज़ाना, जो श्रोताओं को नज़दीकी और दूर-दराज़ की धरती से आए मधुर और रंग-बिरंगे सुरों में डुबो देगा।
जैसे-जैसे चाँद शरद पूर्णिमा की ओर बढ़ेगा और इस भव्य मध्ययुगीन किले की प्राचीरों को आलोकित करेगा — जो मारवाड़ की परंपरा का प्रहरी है और नीली नगरी के ऊपर तपते सुनहरे लाल बलुआ पत्थर में शान से खड़ा है — वैसे ही दर्शक राजस्थान, भारत, भूटान, उज़्बेकिस्तान, कज़ाखस्तान, सीरिया-स्विट्ज़रलैंड, पुर्तगाल, ब्रिटेन, पोलैंड, फ़िनलैंड, स्पेन, कनाडा और कोलंबिया से आए दुर्लभ और मोहक संगीत-लोकों की एक अद्भुत यात्रा पर निकलेंगे।
ये लोक-संगीत, जिनकी जड़ें मध्ययुगीन और प्राचीन परंपराओं में गहराई से जुडी हैं, आज और भी जीवंत होकर समकालीन संगीत शैलियों से संवाद करते हैं, उन्हें आत्मसात करते हैं और आधुनिक दर्शकों से गहरा संबंध स्थापित करते हैं — और इस प्रकार उन्हें एक अनुपम, जीवित और अनमोल वैश्विक संगीत धरोहर से जोड़ते हैं।
पिछले अठारह वर्षों से, जोधपुर रिफ राजस्थान की लोक-संगीत परंपराओं को उनकी गहराई और विविधता के साथ संरक्षित करने, विकसित करने और प्रस्तुत करने के लिए प्रतिबद्ध रहा है, साथ ही विभिन्न संस्कृतियों के लोक-संगीत महानुभावों को उनके साथ संवाद और सहयोग के लिए प्रोत्साहित करता रहा है।
राजस्थान की समृद्ध लोक परंपराओं को मंच पर लाने और उन्हें दुनिया भर के चुनिंदा कलाकारों के साथ साझा करने के उद्देश्य से जन्मा यह उत्सव आज एक विशिष्ट पहचान बना चुका है। यह केवल एक फेस्टिवल नहीं, बल्कि विधा-स्वतंत्र अनुभवों और रचनात्मक सहयोगों का संगम है — एक ऐसा मंच जहाँ लोक-संगीत के दिग्गजों को सम्मान और समर्थन मिलता है, और एक ऐसा घर जहाँ निडर प्रयोग, नवाचार और पुनर्निर्माण निरंतर आकार लेते रहते हैं।
हर साल, मेहरानगढ़ किला एक ऐसी जगह बन जाता है जहाँ अनियोजित घटनाएँ घटती हैं: एक आधी रात का जैम सेशन जो सीमाओं को मिटा देता है, एक ऐसी आवाज़ जो आपने पहले कभी नहीं सुनी पर सालों तक आपके साथ रहती है, एक ऐसी लय जो अजनबियों को एक साथ खड़े होने पर मजबूर कर देती है। खोज के रोमांच, साझा अनुभव की गर्माहट और मानवता के महत्व का एहसास कराने वाले ये क्षण ही जोधपुर रिफ को एक फेस्टिवल से एक साझा स्मृति में बदल देते हैं, जिसे संगीत के शांत होने के बहुत बाद तक भी आगंतुक अपने साथ रखते हैं।
जोधपुर रिफ के संरक्षक, महाराजा गज सिंह II कहते हैं:
“राजस्थान के लोक कलाकारों की असाधारण रेंज और कौशल उन्हें दुनिया के बेहतरीन रूट्स संगीतकारों में से एक बनाते हैं। उनका संगीत पीढ़ियों से चली आ रही एक विरासत का प्रतिबिंब है, लेकिन यह एक जीवंत, विकसित होती हुई कला भी है, जिसे कुछ लोग आज की पीढ़ी के लिए साहसपूर्वक पुनर्व्याख्या कर रहे हैं। जोधपुर रिफ की कल्पना इसी यात्रा को पोषित करने के लिए की गई थी, जो हमारी लोक परंपराओं के लिए एक विश्व मंच और दुनिया भर के संगीतकारों के साथ एक प्रेरक मिलन स्थल प्रदान करता है। यह फेस्टिवल इन आदान-प्रदानों पर फलता-फूलता है, जहाँ आपसी सम्मान, रचनात्मकता और प्रामाणिकता उन प्रदर्शनों को आकार देती है जो दुर्लभ होने के साथ-साथ अविस्मरणीय भी हैं।”
फेस्टिवल निदेशक (Festival Director) दिव्य भाटिया कहते हैं:
लगभग दो दशकों से, जोधपुर रिफ़ की मूल भावना विरासत का सम्मान करते हुए नए प्रयोगों को प्रेरित करती रही है और रूट्स संगीत को इस अटूट विश्वास के साथ संवारती रही है कि संगीत समय और स्थान से परे एक जीवंत संवाद है। यह उत्सव जुड़ाव की कड़ी बनता है — जहाँ भाषा, भूगोल या शैली की सीमाएँ मिट जाती हैं और लोग संगीत के जादू और आकर्षण से एक अद्वितीय माहौल में एक-दूसरे से जुड़ते हैं।
2025 में यही भावना और भी प्रखर होगी। यह दर्शकों को अधिक गहराई से सुनने, विरासत के लिए अपने मन को खोलने और हर प्रस्तुति में निहित नवीनता और ऊर्जा को महसूस करने के लिए आमंत्रित करेगी — यह अनुभव कराते हुए कि जीवित परंपराएँ न केवल कालातीत हैं, बल्कि आज की दुनिया से भी जीवंत संवाद करती हैं।
फेस्टिवल से इतर भी, जोधपुर रिफ़ पूरे वर्ष राजस्थानी लोक-संगीतकारों के साथ सक्रिय रूप से जुड़ा रहता है। यह उनके सहयोग को मंच देता है (जैसे कूल डेज़र्ट प्रोजेक्ट), ज़रूरतमंद कलाकारों के लिए आजीविका के अवसर और सहायता नेटवर्क तैयार करता है (जैसा कि COVID-19 महामारी के दौरान किया गया), और पारंपरिक कला-रूपों को जीवित रखने के लिए संगीतकारों के साथ मिलकर काम करता है, ताकि वे समकालीन दर्शकों से जुड़ सकें। इसी दिशा में, साज़ (SAZ) जैसे बैंड — जो इसी फेस्टिवल से उभरा — ने भुलाए जा चुके गीतों को खोजकर, नई धुनों का निर्माण कर और आधुनिक श्रोताओं के लिए नए बोल रचकर एक अहम भूमिका निभाई है।
जोधपुर रिफ़ ने आधुनिक और पारंपरिक संगीत प्रणालियों के बीच की खाई पाटने, पारंपरिक संगीतकारों के लिए नए दर्शक वर्ग विकसित करने और राजस्थानी कलाकारों को मंच देने के अवसर रचने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इसी प्रयास का हिस्सा रहा 8 अगस्त को मुंबई के रॉयल ओपेरा हाउस में आयोजित विशेष संगीत समारोह “साज़ एंड फ्रेंड्स: व्हेन द डेज़र्ट प्लेज़”, जिसने इस जुड़ाव को और गहराई दी।
जोधपुर रिफ 2025 में दर्शकों को कुछ महान कलाकारों के अनोखे प्रदर्शन देखने को मिलेंगे। इनमें पद्म श्री विजेता लाखा खान और बरकत खान व सावन खान शामिल हैं—मांगणियार किंवदंतियाँ, जिनकी कला राजस्थान के रेगिस्तानी प्रदेशों को जीवंत कर देती है। महोत्सव का संगीत भूटान के पूर्वी हिमालय से आए सोनम दोरजी के प्रदर्शन और मधुर महासीराम मेघवाल के माध्यम से आत्मा की भाषा बोलेगा, जो भारत के सबसे गहरे कवि-संतों की कविताओं में जीवन फूंकते हैं।
इस साल मेहरानगढ़ में मध्य एशिया को भी खास स्थान मिलेगा। इसमें उज़्बेकिस्तान की शशमकाम परंपरा की माहिर गुलज़ोडा ख़ुदोनज़रोवा और कजाकिस्तान की लायला ताज़ीबायेवा शामिल होंगी, जो प्राचीन संगीत रूपों को समकालीन अंदाज़ में पेश करती हैं।
महत्वपूर्ण महिला कलाकारों के इस समूह में पोलैंड की बहु-वादक और संगीत दुभाषिया करोलिना सिचा, फिनलैंड की वायलिन वादक एमिलिया लाजुनेन, पद्म श्री विजेता हिंदुस्तानी शास्त्रीय गायिका अश्विनी भिड़े देशपांडे, राजस्थान की मां-बेटी जोड़ी गंगा और सुंदर, और दमामी समुदाय की बहनें—अनीता और प्रेम डांगी—शामिल होंगी।
फेस्टिवल में मांगणियार कामायचा के उस्ताद घेवर और दरे अपने भाई फ़िरोज़ के साथ ढोलक पर प्रस्तुति देंगे, जो राजस्थान के जैसलमेर और बाड़मेर क्षेत्रों की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है।
दक्षिण भारत से, फेस्टिवल चेन्नई के जटायु बैंड को भी मेजबानी करेगा , जो कर्नाटिक शास्त्रीय संगीत को रॉक और जैज़ के साथ मिलाकर नया और रोमांचक अनुभव प्रस्तुत करता है। इसके अलावा, हिंद महासागर के पार से आए डेवी सिकार्ड रीयूनियन द्वीप समूह के कलाकारों की प्रस्तुति भी होगी, जिनकी जड़ें मेडागास्कर के भावुक और जीवंत सेगा संगीत में हैं।
इस साल का फेस्टिवल कुछ खास वाद्य यंत्रों की परंपराओं को भी उजागर करेगा। इनमें पद्म श्री विजेता लाखा खान की 27-तार वाली सिंधी सारंगी, पंडित सतीश व्यास का संतूर, मध्य एशियाई गिज्ज़क और दोयरा, फ़िनिश फ़िडिल, भूटानी द्रंगयेन और चिवांग, निकोटीन स्विंग की आइबेरियाई गिटार परंपराएं, सुओन्नो डी’अजेरे के वाद्यवृंद में इतालवी मांडोसेलो, और पुर्तगाल के हेल्डर मौटिन्हो के सुंदर और मनमोहक फ़ाडो समूह में पुर्तगाली गिटार शामिल हैं।
मंच पर ढोलक, खड़ताल और भपंग बजाने वाले राजस्थानी तालवादक, कोलंबियाई बीट्स, एफ्रो-लैटिन पर्कशन और जैज़-प्रभावित ड्रम सेट के साथ अपनी कला का प्रदर्शन करेंगे। ये ताल सिर्फ एकल प्रदर्शनों में ही नहीं, बल्कि सहज, क्रॉस-कल्चरल जैम सेशंस में भी जीवंत होगी। इसी तरह का जादू जोधपुर रिफ की अनूठी प्रस्तुति ‘रिफ रसल’ को एक किंवदंती बनाता है, जो विशाल संगीतमय महत्वाकांक्षा से भरा है और जोधपुर रिफ 2025 की अंतिम शाम शरद पूर्णिमा की पूर्व संध्या पर, दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर देगी ।
2025 फेस्टिवल के मुख्य आकर्षण
जटायु: कर्नाटिक स्ट्रिंग्स और गिटार रिफ्फ्स (Riffs)
चेन्नई का जटायु बैंड कर्नाटिक रागों, जैज़ के नवीन प्रयोगों और रॉक की कच्ची ऊर्जा के बीच की सीमाओं को मिटा देता है। उनकी इलेक्ट्रिक गिटार की धुनें मृदंगम और कांजीरा की जटिल ताल के साथ गूंजती हैं, जबकि बेस और ड्रम ऐसी लय रचते हैं जो परंपरा और नवाचार दोनों को साथ लेकर चलती है। उनका प्रदर्शन एक रोमांचक संगीतमय यात्रा का वादा करता है, जहाँ सदियों पुराना संगीत सहजता से वैश्विक शैलियों के साथ संवाद करता है और दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर देता है।
पद्म श्री विजेता लाखा खान: 27 तारों के संरक्षक
27-तारों वाली सिंधी सारंगी के आखिरी जीवित उस्तादों में से एक, लाखा खान का वादन तकनीकी महारत और भावनात्मक गहराई का एक दुर्लभ संगम है। उनका संगीत भंडार, जो पूरी तरह से मौखिक परंपरा से पीढ़ी-दर-पीढ़ी चला आ रहा है, सूफ़ी कलाम, भक्तिपूर्ण भजन और मारवाड़ी, सिंधी, पंजाबी व हिंदी में महाकाव्य गाथाओं तक फैला है। उन्हें सुनना एक जीवित अभिलेखागार को सुनने जैसा है, जो सदियों से अटूट है, जिसमें इतिहास के तारों को छेड़कर मनमोहक संगीत पैदा किया जाता है।
सावन खान: रेगिस्तान की सूफी आवाज़
सीमा के पास डाबलगढ़ गाँव से आने वाले जैसलमेर के मांगणियार समुदाय के सावन खान चार साल की उम्र से गा रहे हैं। सूफी गायन पर उनकी अनूठी पकड़ और उनकी आवाज़, जो सादगी, ध्यान और परमानंद को समान रूप से साथ लेकर चलती है, उनकी पस्तुति बहुत ही गहराई और आध्यात्मिकता से भर देती है। ए.आर. रहमान और कोक स्टूडियो के साथ उनके सहयोग ने इस दिग्गज कलाकार की कला को रेगिस्तान से बाहर दुनिया तक पहुंचाया है, लेकिन जोधपुर रिफ के अंतरंग माहौल में ही उनके संगीत के दिव्य हृदय को पूरी तरह से महसूस किया जा सकता है।
बासेल राजूबा: जैज़ की धुनें, प्राचीन जड़ें
सीरियाई मूल के संगीतकार, संगीतकार और सैक्सोफ़ोन वादक बासेल राजूबा का संगीत अपनी मातृभूमि की समृद्ध पारंपरिक पद्धतियों और समकालीन जैज़ के सहज प्रयोगों के बीच आसानी से घूमता है। लेवेंटाइन स्केल, जटिल ताल और अपनी खुद की मूल रचनाओं का उपयोग करके, वह एक ऐसी ध्वनि-दुनिया बुनते हैं जो जितनी गहराई से अपनी जड़ों से जुड़ी है, उतनी ही आधुनिक भी है।
डांगी सिस्टर्स: दमामी परंपरा की आवाज़ें
निंबोला बिस्वा के दमामी समुदाय में जन्मी अनीता और प्रेम डांगी ऐसा संगीत लेकर आती हैं जो सदियों पुरानी मांड परंपरा से जुड़ा है और जिसमें भक्ति और सूफी की गूंज है। उनकी सुरीली आवाज़ें सिर्फ प्रदर्शन नहीं हैं, बल्कि स्त्रीत्व, आस्था और लालसा की जीवंत कहानियाँ हैं। ये आवाज़ें कभी राजपूत दरबारों में गूंजने वाले विषयों को दर्शाती हैं, और साथ ही उन आम लोगों से भी जुड़ती हैं जो आज के राजस्थान में रहते हैं।
कूल डेज़र्ट प्रोजेक्ट: लोक संगीत और ब्रास का संगम
राजस्थानी तिकड़ी साज़ — ढोलक उस्ताद सादिक खान, सिंधी सारंगी वादक और गायक असिन खान, और खड़ताल नवाचारक जाकिर खान — मुंबई के सैक्सोफोनवादक राइस ‘सैक्संटोस्ट’ सेबेस्टियन के साथ मिलकर एक साहसिक संगीत मिश्रण रचते हैं। साथ में, ये कलाकार लोक तालों को ब्ल्यूज़ी ब्रास के साथ पिरोकर, रेगिस्तान की संगीत परंपराओं को नए रंग और गतिशीलता में प्रस्तुत करेंगे।
सोनम दोरजी: भूटान की आध्यात्मिक धुनें
भूटान के प्रमुख सांस्कृतिक संरक्षकों में से एक, सोनम दोरजी, द्रंगयेन, चिवांग और एसराज की मधुर धुनों को संकटग्रस्त खेंगपा भाषा में गाए जाने वाले मंत्रमय गीतों के साथ जीवंत करते हैं। उनके प्रदर्शन ध्यानमग्न और आत्मा को छू लेने वाले होते हैं, जो भूटान की उच्चभूमि की सांगीतिक आत्मा को किले की चाँदनी में सरोबोर करेंगे ।
गुलज़ोदा ख़ुदोनज़रोवा(Gulzoda Khudoynazarova): छह-मक़ाम की आवाज़(The Six-Maqam Voice)
उज़्बेकिस्तान की शशमकाम परंपरा की एक उस्ताद, गुलज़ोदा अपनी मनमोहक गायकी को कुशल दोयरा (एक तरह का वाद्य यंत्र) की थाप के साथ मिलाती हैं। दुतार और गिज्ज़क के साथ, वह यूनेस्को की विरासत सूची में शामिल इस कला को एक नया जीवन देती हैं, जो एक साथ अंतरंग और भव्य, दोनों तरह का अनुभव प्रदान करती है।
हेल्डर मौटिन्हो: पुर्तगाल की सउदादे (Saudade) की आवाज़
पुर्तगाली फ़ाडो (fado) के सबसे सच्चे और भावपूर्ण गायकों में से एक, हेल्डर मौटिन्हो अपने मंच पर कविता, पुरानी यादें और गहरी भावनाओं को जीवंत करते हैं। उनके प्रदर्शन में पारंपरिक फ़ाडो और नई रचनाओं का संगम होता है, जो सउदादे की मीठी-कड़वी भावना को बखूबी दर्शाता है — वह पुर्तगाली भावना जिसमें हम खोई हुई, पर दिल में संजोई यादों और चीज़ों के लिए तरसते हैं। वाद्य यंत्रों के महान कलाकारों के साथ, उनका संगीत यूरोप की सबसे भावुक गायन परंपराओं में से एक में दर्शकों को एक संवेदनशील और मंत्रमुग्ध कर देने वाली यात्रा पर ले जाता है।
महासीराम मेघवाल: संत-कवियों के भजन
मेघवाल समुदाय की प्राचीन भक्ति परंपराओं से गहरे जुड़ाव रखने वाले प्रसिद्ध महासीराम मेघवाल का गायन कबीर, मीरा और गोरखनाथ जैसे संतों की कविताओं से वातावरण को मंत्रमुग्ध कर देता है। उनकी जागरण-शैली की प्रस्तुति आध्यात्मिक विश्वास और ऊर्जा से परिपूर्ण होती है, जो दर्शकों को साझा अनुभव और संगीत के एक जीवंत स्थान में ले जाती है। फेस्टिवल की शुरुआत से ही एक महत्वपूर्ण कड़ी रहे महासीराम ने पहले जोधपुर रिफ का भी उद्घाटन किया था।
किलाबीटमेकर: कोलंबिया के डांस बीट्स
डीजे और निर्माता किलाबीटमेकर एफ्रो-लैटिन बीट्स, डीप बेस और इलेक्ट्रॉनिक धुनों का अनोखा मिश्रण पेश करते हैं, जो एक रोमांचक और ऊर्जा-भरा डांस अनुभव रचता है। जोधपुर RIFF 2025 में, वह पहले कोलंबियाई तालवादकों के साथ और फिर राजस्थानी तालवादकों के साथ मिलकर क्लब मेहरान में अंतरराष्ट्रीय स्पंदन और जोश भरेंगे। यह तालमेल मैडेलिन की सड़कों की ऊर्जा को रेगिस्तान की पारंपरिक तालों के साथ जोड़ते हुए रूट्स संगीत को डांस फ्लोर के लिए नए अंदाज़ में जीवंत कर देगा।
एमिलिया लाजुनेन: फ़िनलैंड की मंत्रमुग्ध कर देने वाली लोक वायलिन वादक
एमिलिया लाजुनेन अपनी वायलिन वादन की कुशलता से फ़िनिश लोक संगीत की कच्ची, सम्मोहक आत्मा को जीवंत करती हैं। प्राचीन रूनी और जोइक परंपराओं से प्रेरित, उनके एकल प्रदर्शन में पारंपरिक धुनों और नवीन प्रयोगों का अद्भुत संगम होता है, जो रहस्यमय जंगलों और शाश्वत परिदृश्यों का एहसास कराता है। एमिलिया का संगीत श्रोताओं को एक गहन, ध्यानमग्न यात्रा पर ले जाता है, जहाँ पुराना और नया एक मंत्रमुग्ध कर देने वाली लय में मिलकर भावनाओं को जीवंत कर देता है।.
एन रूट: किले की सैर, साउंड एंड स्टोरी
यह ऑडियो-निर्देशित यात्रा मेहरानगढ़ की गलियों, प्राचीरों और सीढ़ियों को एक जीवंत मंच में बदल देती है। परिवेशीय ध्वनियों, स्थानीय कथाओं और विचारोत्तेजक किस्सों के मिश्रण के माध्यम से, यह अनुभव महोत्सव में आने वालों को किले को केवल एक भौतिक स्थल ही नहीं, बल्कि एक भावनात्मक और सांस्कृतिक परिदृश्य के रूप में महसूस कराने के लिए आमंत्रित करेगा ।
पंडित सतीश व्यास के साथ पारस नाथ और मुकुंद देव: संतूर और तबला का संवाद
पद्म श्री विजेता और संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित पंडित सतीश व्यास भारत के प्रमुख संतूर वादकों में से एक हैं। उनकी काव्यात्मक शैली उनके पिता और गुरु, स्वर्गीय सी. आर. व्यास, और शिवकुमार शर्मा घराने की परंपराओं से प्रेरित है। ध्यानमग्न आलाप, जटिल ताल और मधुर इम्प्रोवाइजेशन को संतुलित करते हुए, उन्होंने संतूर को इसकी कश्मीरी लोक जड़ों से उठाकर दुनिया भर के मंचों एडिनबर्ग इंटरनेशनल फेस्टिवल से लेकर आगा खान म्यूजियम तक पहुँचाया है ।
जोधपुर RIFF में, उनके साथ बांसुरी पर अद्भुत पारस नाथ और तबले पर मुकुंद देव होंगे। पारस नाथ विश्व प्रसिद्ध बांसुरी वादक हैं, जो अपनी शास्त्रीय प्रस्तुतियों के साथ-साथ फिल्म संगीत में भी अपनी उत्कृष्टता के लिए जाने जाते हैं। मुकुंद देव की तबला वादन की संवेदनशीलता और जटिलता, पंडित सतीश व्यास के संतूर के साथ मिलकर एक मंत्रमुग्ध कर देने वाला संगीत संवाद रचती है।
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जोधपुर रिफ 2025 का कार्यक्रम और टिकट ऑनलाइन https://jodhpurriff.org/ पर उपलब्ध हैं ।