खेती से कम हो रहा किसान के बेटे का रुझान, जो चिंता का विषय : शेखावत
काजरी में शुष्क क्षेत्रों में सतत खेती पर दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला
जोधपुर। केन्द्रीय जलशक्ति मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत ने कहा कि किसान के बेटे का रुझान खेती में कम हो रहा है। वो खेती के बजाय नौकरी करना चाहता हैं, जो चिन्ता का विषय है। इसलिए खेती को लाभदाय बनाने के लिए कृषि वैज्ञानिकों और सरकारों को विचार करना होगा।
सोमवार को केन्द्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान (काजरी), जोधपुर और भारतीय कृषि आर्थिक अनुसंधान केन्द्र, नई दिल्ली द्वारा आयोजित शुष्क क्षेत्रों में सतत खेती पर दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला के उद्घाटन अवसर पर बतौर मुख्य अतिथि शेखावत ने कहा कि बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण जल संरक्षण करना बहुत जरूरी हो गया है। इसलिए मरुक्षेत्र में जल संरक्षण के लिए काजरी द्वारा विकसित तकनीकों को अपनाना चाहिए। उन्होंने परंपरागत खेती को प्राकृतिक खेती में बदलने की आवश्यकता पर अपनी बात रखी।
विशिष्ट अतिथि केन्द्रीय कृषि राज्यमंत्री कैलाश चौधरी ने कहा कि खेती के साथ हमें पर्यावरण को भी सुरक्षित रखना होगा। उन्होंने जलवायु में हो रहे बदलाव को देखते हुए खेती के लिए नए अनुसंधान की आवश्यकता के लिए कृषि वैज्ञानिकों से इस संबंध में कार्य करने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि प्राकृतिक खेती और मूल्य संवर्धन के कार्य के लिए भारत सरकार द्वारा बनाई गई योजनाएं किसानों के लिए फायदेमंद होंगी।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली के उप महानिदेशक (प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन) डॉ.एस.के.चौधरी ने प्राकृतिक संसाधनों के दोहन को खेती, जलवायु और पर्यावरण के लिए घातक बताया। उन्होंने कहा कि इसलिए प्राकृतिक संसाधनों को बचाना होगा। काजरी निदेशक डॉ.ओ.पी. यादव ने सभी का स्वागत करते हुए कहा कि खेती में आने वाली चुनौतियों पर इस दो दिवसीय कार्यशाला में विचार-विमर्श किया जाएगा।
परमहंस श्री 108 रामप्रसाद महाराज, महंत बड़ा रामद्वारा, सूरसागर, जोधपुर ने कहा कि हमें प्रकृति से छेड़छाड़ करने से बचना चाहिए। गौवंश को बचाना चाहिए। अखिल भारतीय संगठन मंत्री, भारतीय किसान संघ के दिनेश कुलकर्णी ने भी अपने विचार रखे। भारतीय किसान संघ के प्रदेश अध्यक्ष दल्लाराम पटेल, कृषि-आर्थिक अनुसंधान केन्द्र के प्रदेश प्रमुख सुहास मनोहर, रतनलाल डागा, काजरी के विभागाध्यक्ष और वैज्ञानिक उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन राजेन्द्र बाबू दुबे और धन्यवाद सुहास मनोहर ने दिया।