धर्म कोई आदान-प्रदान, क्रय-विक्रय की वस्तु नहीं
सेवा भारती समाचार
जोधपुर। धर्म कोई आदान-प्रदान, क्रय-विक्रय की वस्तु नहीं है। महापुरुषों के सिद्धांतों को आत्मसात करना ही धर्म का पालन करना है। उक्त विचार संत कमलमुनि कमलेश ने महावीर भवन निमाज की हवेली में व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि पंथ परिवर्तन नहीं कर्म परिवर्तन से कल्याण होगा। सियाल को शेर की खाल पहनाने से शेर नहीं बन जाता। उन्होंने कहा कि धर्म परिवर्तन करने और करवाने वाले दोनों ही अज्ञानी है। लोभ और स्वार्थ में किया गया परिवर्तन टिकाऊ नहीं बिकाऊ होता है। धर्म की ओट में खरीद-फरोख्त का धंधा करने वाला और करवाने वाला गोरख धंधा दोनोंके लिए पतन और पाप का कारण है। जितना समय और पैसा धर्म परिवर्तन में लगा रहे हैं वही ह्रदय परिवर्तन में लगा देते तो धरती स्वयं तीर्थ हो जाती। मुनि कमलेश ने कहा कि पंथ को ही धर्म मान लेना उपासना पद्धति के कर्मकांड तक धर्म की इतिश्री मान लेना नादानी है। अहिंसा करुणा सद्भाव ही धर्म का सच्चा प्राण है। जैन संत ने बताया कि आध्यात्मिकता का ढोल पीटना आज नैतिकता का दिवाला निकलना धर्म के नाम पर पाखंड है।